23-04-93  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

निश्चयबुद्धि भव, अमर भव

सिलवर जुबली में आये हुए पुराने भाई-बहनों के स्नेह भरे निमन्त्रण पर प्यारे अव्यक्त बापदादा बच्चों की महफिल में पधारे तथा मीठी दृष्टि देते हुए बोले - आज बापदादा सर्व अति स्नेही, आदि से यज्ञ की स्थापना के सहयोगी, अनेक प्रकार के आये हुए भिन्न-भिन्न समस्याओं के पेपर में निश्चयबुद्धि विजयी बन पार करने वाली आदि स्नेही, सहयोगी, अटल, अचल आत्माओं से मिलन मनाने आये हैं। निश्चय की सब्जेक्ट में पास हो चलने वाले बच्चों के पास आये हैं। यह निश्चय-चाहे इस पुरानी जीवन में, चाहे अगले जीवन में भी सदा विजय का अनुभव कराती रहेगी। ‘निश्चय’ का, ‘अमर भव’ का वरदान सदा साथ रहे। विशेष आज जो बहुतकाल की अनुभवी बुजुर्ग आत्मायें हैं, उन्हों के याद और स्नेह के बंधन में बंधकर बाप आये हैं। निश्चय की मुबारक!

एक तरफ यज्ञ अर्थात् पाण्डवों के किले का जो नींव अर्थात् फाउन्डेशन आत्मायें हैं वह भी सभी सामने हैं और दूसरे तरफ आप अनुभवी आदि आत्मायें इस पाण्डवों के किले की दीवार की पहली ईटें हो। फाउन्डेशन भी सामने है और आदि ईटे, जिनके आधार पर यह किला मजबूत बन विश्व की छत्रछाया बना, वह भी सामने हैं। तो जैसे बाप ने बच्चों के स्नेह में ‘‘जी हज़ूर, हाज़र’’ करके दिखाया, ऐसे ही सदा बापदादा और निमित्त आत्माओं की श्रीमत वा डायरेक्शन को सदा ‘जी हाज़र’ करते रहना। कभी भी व्यर्थ मनमत वा परमत नहीं मिलाना। हाज़र हज़ूर को जान श्रीमत पर उड़ते चलो। समझा? अच्छा! (इस प्रकार आधे घण्टे पश्चात् ही प्यारे अव्यक्त बापदादा ने हाथ हिलाते हुए सभी बच्चों से विदाई ली)